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Showing posts from April, 2020

सनातन धर्म -

सनातन धर्म -में कालान्तर में पंथों की भरमार हो गई और विचार- अा चार वैभिन्न्य ने अपना अलग- अलग स्वरुप बना लिया. कोई ईश्वरवादी कोई अनीश्वरवादी। कोई प्रकृतिवादी कोई प्रगतिवादी. फिर देवताओं का भौतिकशरीर के रूप में पूजन। मूर्तिपूजा ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया। आयुधों के धारण से उनकी अलग अलग पहचान बनी. धनुषवाण , चक्र, गदा, पद्म, फिर मुरली, शंख, धूर्जटेः। इसमें तीन पंथ पप्रमुखता से उभरे. शैव, वैष्णव एवं शाक्त- इनमें भी विभिन्न विचारवाद -द्वैत , अद्वैत, विशिष्टाद्वैत - फिर प्रमुख पु रुषों के सम्प्रदाय -रामानुज, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क ,नाथपंथ, कनफड़ा योगी, नीलाम्बरधारी । इसके सामानांतर जैन भी अपने तीर्थंकरों के साथ नया संसार लेकर आये। अनीश्वरवादी बौद्धों ने सनातन के विरूद्ध अनीश्वरवाद को बढ़ावा दिया। पर सनातनियों ने बुद्ध को अवतार में शामिल कर उनकी मूर्ति पूजा का बीज डाल दिया जो अब फूलने फैलने लगा. अनीश्वरवाद पर ईश्वरवादियों का वर्चश्व स्थापित हो गया. आधुनिक समय में नव -प्रयोगवादियों ने बहुत सारे तथाकथित पंथ और तम्बू गाड़े -उखाड़े. अब ऐसी स्थिति बनी की भारतीय जनमानस में सबकुछ झोल- झाल हो गया....

ब्राह्मणों में एकत्व की स्थापना हेतु विचार

सभी श्रोताओं का वंदन भिनन्दन , मैं विजय प्रकाश शर्मा , हैदराबाद से आपको सम्बोधित कर रहा हूँ। श्री महेंद्र पांडेय जी ने आज की वार्ता के लिए मुझे विषय दिया है - ब्राह्मणों में एकत्व की स्थापना हेतु विचार। यह विषय काफी गंभीर है। इस पर मैं चर्चा करू इसके पहले हमें " ब्राह्मण" को जानना होगा। ब्राह्मण की दो व्याख्याएं हैं १.शास्त्रोचित - ब्रह्म जानाति यह सह ब्राह्मणः अर्थात जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण है २. ब्राह्णण नामक जाति। शात्रोचित व्याख्या में एक पेंच है - ब्रह्म जानाति का। अब आप पूछेंगे ब्रह्म क्या है ? ब्रह्म मनुष्य ही है , जब वह ज्ञान की गंगा में स्नान कर निकलता है - और घोषित करता है - अहम् ब्रह्मास्मि। अब यह स्थिति कैसे प्राप्त होती है ? तत्वमसि के माध्यम से - स्वयं को जान्ने से। इस ज्ञान का सूत्र है - ततः किम ? फिर क्या यानी अनंत जिज्ञासा। अर्थात जो स्वयं में छिपे ब्रह्म को जान गया हो। दूसरी स्थिति है - जिसने ब्रामण वंश में जन्म लिया है वह ब्राह्मण। इसमें बिना प्रयास के ही ब्राह्मण उद्घोषित हो जाता है। यह सदियों से चल रही परंपरा है जिसे बदला नहीं जा सकता। इसमें भी...