सनातन धर्म -

सनातन धर्म -में कालान्तर में पंथों की भरमार हो गई और विचार- अा चार वैभिन्न्य ने अपना अलग- अलग स्वरुप बना लिया. कोई ईश्वरवादी कोई अनीश्वरवादी। कोई प्रकृतिवादी कोई प्रगतिवादी.
फिर देवताओं का भौतिकशरीर के रूप में पूजन। मूर्तिपूजा ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया। आयुधों के धारण से उनकी अलग अलग पहचान बनी. धनुषवाण , चक्र, गदा, पद्म, फिर मुरली, शंख, धूर्जटेः। इसमें तीन पंथ पप्रमुखता से उभरे. शैव, वैष्णव एवं शाक्त- इनमें भी विभिन्न विचारवाद -द्वैत , अद्वैत, विशिष्टाद्वैत - फिर प्रमुख पुरुषों के सम्प्रदाय -रामानुज, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क ,नाथपंथ, कनफड़ा योगी, नीलाम्बरधारी ।
इसके सामानांतर जैन भी अपने तीर्थंकरों के साथ नया संसार लेकर आये। अनीश्वरवादी बौद्धों ने सनातन के विरूद्ध अनीश्वरवाद को बढ़ावा दिया। पर सनातनियों ने बुद्ध को अवतार में शामिल कर उनकी मूर्ति पूजा का बीज डाल दिया जो अब फूलने फैलने लगा. अनीश्वरवाद पर ईश्वरवादियों का वर्चश्व स्थापित हो गया.
आधुनिक समय में नव -प्रयोगवादियों ने बहुत सारे तथाकथित पंथ और तम्बू गाड़े -उखाड़े.
अब ऐसी स्थिति बनी की भारतीय जनमानस में सबकुछ झोल- झाल हो गया.
सबकी अपनी डफली , अपना राग. अब नए रूप में परगट हुआ विराग. अपने- अपने तम्बू, अपने अपने बांस. क्या नाम दें इसे -? सबकुछ गड्ड-मड्ड।

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