ब्राह्मणों में एकत्व की स्थापना हेतु विचार
सभी श्रोताओं का वंदन भिनन्दन , मैं विजय प्रकाश शर्मा , हैदराबाद से आपको सम्बोधित कर रहा हूँ।
श्री महेंद्र पांडेय जी ने आज की वार्ता के लिए मुझे विषय दिया है - ब्राह्मणों में एकत्व की स्थापना हेतु विचार। यह विषय काफी गंभीर है। इस पर मैं चर्चा करू इसके पहले हमें " ब्राह्मण" को जानना होगा।
ब्राह्मण की दो व्याख्याएं हैं १.शास्त्रोचित - ब्रह्म जानाति यह सह ब्राह्मणः अर्थात जो ब्रह्म को जानता है वह ब्राह्मण है २. ब्राह्णण नामक जाति।
शात्रोचित व्याख्या में एक पेंच है - ब्रह्म जानाति का। अब आप पूछेंगे ब्रह्म क्या है ? ब्रह्म मनुष्य ही है , जब वह ज्ञान की गंगा में स्नान कर निकलता है - और घोषित करता है - अहम् ब्रह्मास्मि। अब यह स्थिति कैसे प्राप्त होती है ? तत्वमसि के माध्यम से - स्वयं को जान्ने से। इस ज्ञान का सूत्र है - ततः किम ? फिर क्या यानी अनंत जिज्ञासा। अर्थात जो स्वयं में छिपे ब्रह्म को जान गया हो।
दूसरी स्थिति है - जिसने ब्रामण वंश में जन्म लिया है वह ब्राह्मण। इसमें बिना प्रयास के ही ब्राह्मण उद्घोषित हो जाता है। यह सदियों से चल रही परंपरा है जिसे बदला नहीं जा सकता। इसमें भी उच्च सामाजिक , बौद्धिक स्थिति को बनाये रखना पड़ता है। इसकी प्रक्रिया थोड़ी सहज है
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
शिक्षक के पास शिक्षा पूर्ण होने पर यह गुरुकुल के जमाने का दीक्षांत प्रतिज्ञा पर निर्भर है - गुरु और शिष्य - हम दोनों साथ चलें , हम दोनों शिक्षा रुपी फल का साथ आस्वादन करें , हम साथ कार्य करें और हम दोनों के द्वारा अधिगत विद्या फलवती हो। इस तरह ब्राह्मण जाति को भी उच्च सामाजिक , बौद्धिक स्थिति को बनाये रखना पड़ता है. ब्राह्मण जाति ने अपने ज्ञान के आधार पर समाज में हमेशा से वर्चश्व बनाये रखा है। उदाहरण के लिए मैं एक संक्षिप्त विवरण रखता हूँ -
१. वामन ने राजा बलि का अभिमान मर्दन किया था , अपने वर्चस्वा की स्थापना नहीं - उन्होंने बलि के राज्य पर अधिकार नहीं किया था. २. परशु राम ने भी क्षत्रियों को परास्त कर उनका अभिमान मर्दन किया था , और उन्हें सही मार्ग पर चलने को मज़बूर कर दिया था , पर अपना सामाज्य स्था पित नहीं किया था। अतः वर्चश्व सांकेतिक था। फिर राम को अपनी जिम्मेवारी सौंपकर तपस्या करने चले गए। ३. लंकेश रावण पराक्रमी राजा था - अर्थात ब्राह्मण होते हुए क्षत्रिय धर्म का आचरण करने वाला था , अतः वस्तुतः वह क्षत्रिय राजा था जिसे राम ने परास्त किया था , ब्राह्मण को नहीं। रावण की मृत्यु के बाद लंका के सिंघासन पर विभीषण को बैठा कर राम ने उसका राज्य सौंप दिया था। ४. राम ने अपने प्रयाण काल के पहले अयोध्या का राज ब्राह्मण श्रेष्ठ गुरु वशिष्ठ को सौंप दिया था , जिनके प्रतिनिधि के रूप में भरत वंशीय राजाओं ने राज्य संभाला , वे सब ब्राह्मण वशिष्ठ के प्रतिनिधि थे। अतः ब्राह्मण कभी दोयम दर्ज़े का हुआ ही नहीं। इन तीनों समयखण्ड में चतुः वर्ण व्यवस्था थी और एक वर्ण से दुसरे में प्रवेश की स्वतंत्रता थी। अभी तक जाति - व्यवस्था का शुभारम्भ नहीं हुआ । ५. अब आते हैं आपके महाभारत काल में। इस युग में भी हमें परशुराम तपस्वी रूप में , गुरु का धर्म निभाते हैं - भीष्म , द्रोण , कर्ण के गुरु के रूप में। यहाँ भी एक बार पुनः उन्हें क्षत्रिय रूप में सामने आना पड़ता है भीष्म से युद्ध के समय ताकि उनका मान मर्दन कर सकें। ब्राह्मण की श्रेष्ठता बरकरार रहती है। ६. द्रोण और कृप ने कौरवों -पांडवों के गुरु के रूप में भीष्म का आग्रह स्वीकार किया था , नौकरी नहीं करते थे , उनकी श्र्ष्ठता बरकरार थी।
७. यदुवंशी कृष्ण के गुरु सांदीपनि भी श्रेष्ठ ब्राह्मण ही थे , ब्राह्मण गरिमा यहाँ भी सुरक्षित थी। ८. द्वारिकाधीश कृष्ण भी गुरु वशिष्ठ के भारत राज्य के उनके प्रतिनिधि राजा की तरह ही संचालित किया , क्योंकि राम का राज्य वशिष्ठ के ही जिम्मे था और भारत पर इनका प्रतिनिधि ही राजा हो सकता था। चूँकि कृष्ण ने भारतवंशियों को परास्त नहीं किया था अतः वशिष्ठ का राज्य ही रहा। अर्थात यहाँ भी ब्राह्मण ही श्रेष्ठ था। ९. महावीर और बुद्ध के समय भी ब्राह्मण प्रतिनिधियों ने ही धर्म प्रचार किया था। बुद्ध का सर्वप्रिय शिष्य सारिपूत्र मगध का सकलदीपी ही था। १० . मुस्लिम और मघुर राजाओं ने भारतवंशी क्षत्रियो को हराया था और राज्य हासिल किया था अतः ब्राह्मण राज्य की समाप्ति के साथ म्लेक्ष राज्य की स्थापना हुई. फिर अंग्रेजों ने उनसे सत्ता छीन ली। ब्राह्मण हासिये पर चले गए क्योंकि ऊके गुरुकुल को मैकाले की शिक्षा व्यवस्था ने भंग कर दिया। पर अंग्रेजों ने ब्राह्मण की श्रेस्थता को स्वीकार लिया था। उन्हें कभी प्रताड़ित नहीं किया गया। मराठा ब्राह्मण राज्य के साथ उनकी संधी हो गई थी। ब्राह्मणों को विभिन्न राजाओं के तहत पुजारी और जमींदारी प्रदान की गई थे। सतह श्रेस्थता बरकरार ही रही।
११ । अंत में आग्रह - निरास न हों आप अभी भी अपनी मेधा से श्रेष्ठ ही हैं यह आधुनिक अनुवांशिक अनुसंधानों ने डी े एन ए विश्लेषण से सिद्ध कर दिया है। चिंतित न हों अपनी श्रेष्ठ ता अपने कर्मों से बरकरार रखें।
ब्राह्मण जाती में बहुत से भेद विभेद हैं - पांच गौड़ और पांच द्रविड़ का। इसके अलावे दिव्य मग ब्राह्मणों समूह है , पञ्च गौड़ और पांच द्रविड़ों में पहले से ही एकात्म है या कहिये एकात्म होने कीइक्षा और व्यवहार का चलन है। अब हमारे सामने एकात्म की समस्या मग ब्राह्मणों में ही है। कारण स्पष्ट है - " सिंघण के लेहड़े नहीं , हंसन की नहीं पांत , लालन की नहीं बोरिया , साधू न चले जमात। सूर्य पूजक इन ब्राह्मणों में सूर्य का ही तेज है अतः प्रखरता है , विद्वता है , साथ ही दसाननि अहंकार भी , जो इन्हे एक नहीं होने देता , एक और कारण है - स्वजाति आलोचना की जिसमें इनका ज्यादा समय लगता है। तो आज के विषय को मैं इन्ही मग ब्राह्मणो में एकत्व की स्थापना हेतु विचाररखना चाहता हूँ , मेरे विचार सांकेतिक हैं , बाध्यकारी नहीं।
अब आता हूँ आज के मुख्य षय ब्राह्मण एकात्म पर
एकात्म दो तरह से स्थापित किया जा सकता है - १. बौद्धिक और दूसरा सामाजिक स्तर पर /- ुम यहाँ सामाजिक एकात्म की बात करेंगे-
कलयुग में संघ में ही शक्ति है य- संघे शक्ति कलयुगे। तो सामाजिक स्तर पर एकात्म संघ के माध्यम से ही स्थापित की जा सकती है क्योंकि अब देश में प्रजातंत्र है जहाँ संख्या बल की प्रधानता है। हमें अपने विभिन्न सामाजिक संगठनों में एकात्म लाना होगा , पर यह सरल नहीं है , सबकी अपनी अपनी सूर्यमुखी है और सभी पद की प्रतिष्ठा में विश्वास वाले संघ हैं। तोइसमे श्रेष्ठ कौन की लड़ाई जारी है। अब एकात्म कैसे हो ?
सभी संगठनों के प्रतिनिधि एक सभा में जमा होकर इसपर चिंतन करें और एक राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय समिति का गठन सभी अपने अपने प्रतिनिधि के माध्यम से करें। इसमें कार्यकारिणी, अध्यक्ष , सचिव जैसे पद न रखे जाएँ। एक समन्यवक सर्व सम्मति से चुना जाए दो वर्ष के लिएहो और एकता के सूत्र में पिरोने का काम प्रारम्भ हो।
दूसरा उपाय है अपनी जाति के परिवारों में मिलान , सहभोज , सह सांस्कृतिक कार्यक्रम , सुख दुःख में साथ देने की मानसिकता को बढ़ाया जाय. युवा लोगों को आगे लाया जाए , इन सब क्रिया कलापों को सभी फेसबुक पेज पर प्रचारित प्रसारित किया जाय। सार्वजनिक यज्ञ , विवाहादि को मिलने का स्थान तथा एकात्म का साधन बनाया जाय। अपने जेवनार गीत के माध्यम से एकात्म का प्रचार - प्रसार हो , इससे नै पीढ़ी में नया जोश होगा , अपने को सामाजिक पहचान के साथ जोड़ने का। यह गाँव , शहर, मंडल , जिला , राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित हों। इन सब छोटे-छोटे उपायों के माध्यम से एकात्म को बढ़ावा मिलेगा।व्यक्तिगत आलोचना वाले का सामाजिक वहिष्कार कर उसे सुधारा जाए। सह गच्छध्वं , सह बदध्वं , सं में मनांसि जानताम , सामान्य मंत्रः समिति समानि, समानं मनः सह चित में शाम। सुर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयाः , सुर्वे भद्राणि पश्यन्तु , माँ कश्चित् दुःख भाग्यम भवेत्।
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